गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

अफ़्क़ार अल्वी (मुर्शिद)

मुर्शिद 

मुर्शिद प्लीज़ आज मुझे वक़्त दीजिये 
मुर्शिद मैं आज आप को दुखड़े सुनाऊँगा 
मुर्शिद हमारे साथ बड़ा ज़ुल्म हो गया 
मुर्शिद हमारे देश में इक जंग छिड़ गयी 
मुर्शिद सभी शरीफ़ शराफ़त से मर गए 
मुर्शिद हमारे ज़ेहन गिरफ़्तार हो गए 
मुर्शिद हमारी सोच भी बाज़ारी हो गयी 
मुर्शिद हमारी फौज क्या लड़ती हरीफ़ से 
मुर्शिद उसे तो हम से ही फ़ुर्सत नहीं मिली 
मुर्शिद बहुत से मार के हम ख़ुद भी मर गए 
मुर्शिद हमें ज़िरह नहीं तलवार दी गयी 
मुर्शिद हमारी ज़ात पे बोहतान चढ़ गए 
मुर्शिद हमारी ज़ात पलांदों में दब गयी 
मुर्शिद हमारे वास्ते बस एक शख़्स था 
मुर्शिद वो एक शख़्स भी तक़दीर ले उड़ी 
मुर्शिद ख़ुदा की ज़ात पे अंधा यक़ीन था 
अफ़्सोस अब यक़ीन भी अंधा नहीं रहा 
मुर्शिद मुहब्बतों के नताइज कहाँ गए 
मुर्शिद मेरी तो ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी 
मुर्शिद हमारे गाँव के बच्चों ने भी कहा 
मुर्शिद कूँ आखि आ के सदा हाल देख वजं 
मुर्शिद हमारा कोई नहीं एक आप हैं 
ये मैं भी जानता हूँ के अच्छा नहीं हुआ 
मुर्शिद मैं जल रहा हूँ हवाएँ न दीजिये 
मुर्शिद अज़ाला कीजिये दुआएँ न दीजिये 
मुर्शिद ख़मोश रह के परेशाँ न कीजिये 
मुर्शिद मैं रोना रोते हुए अंधा हो गया 
और आप हैं के आप को एहसास तक नहीं 
हह! सब्र कीजे सब्र का फ़ल मीठा होता है 
मुर्शिद मैं भौंकदै हाँ जो कई शे वि नहीं बची 
मुर्शिद वहां यज़ीदियत आगे निकल गयी 
और पारसा नमाज़ के पीछे पड़े रहे 
मुर्शिद किसी के हाथ में सब कुछ तो है मगर
मुर्शिद किसी के हाथ में कुछ भी नहीं रहा 
मुर्शिद मैं लड़ नहीं सका पर चीख़ता रहा 
ख़ामोश रह के ज़ुल्म का हामी नहीं बना 
मुर्शिद जो मेरे यार भला छोड़ें रहने दें 
अच्छे थे जैसे भी थे ख़ुदा उन को ख़ुश रखें 
मुर्शिद हमारी रौनकें दूरी निगल गयी 
मुर्शिद हमारी दोस्ती सुब्हात खा गए 
मुर्शिद ऐ फोटो पिछले महीने छिकाया हम 
हूँ मेकुं देख लगदा ऐ जो ऐ फोटो मेदा ऐ 
ये किस ने खेल खेल में सब कुछ उलट दिया 
मुर्शिद ये क्या के मर के हमें ज़िन्दगी मिले 
मुर्शिद हमारे विरसे में कुछ भी नहीं सो हम 
बेमौसमी वफ़ात का दुख छोड़ जाएंगे 
मुर्शिद किसी की ज़ात से कोई गिला नहीं 
अपना नसीब अपनी ख़राबी से मर गया 
मुर्शिद वो जिस के हाथ में हर एक चीज़ है 
शायद हमारे साथ वही हाथ कर गया 
मुर्शिद दुआएँ छोड़ तेरा पोल खुल गया 
तू भी मेरी तरह है तेरे बस में कुछ नहीं 
इंसान मेरा दर्द समझ सकते ही नहीं 
मैं अपने सारे ज़ख्म ख़ुदा को दिखाऊँगा 
ऐ रब्बे कायनात! इधर देख मैं फ़कीर 
जो तेरी सरपरस्ती में बर्बाद हो गया 
परवरदिगार बोल कहाँ जाएँ तेरे लोग 
तुझ तक पहुँचने को भी वसीला ज़रूरी है 
परवरदिगार आवे का आवा बिगड़ गया 
ये किसको तेरे दीन के ठेके दिए गये 
हर शख़्स अपने बाप के फिरके में बंद है 
परवरदिगार तेरे सहीफे नहीं खुले 
कुछ और भेज तेरे गुज़िश्ता सहीफों से 
मक़सद ही हल हुए हैं मसाइल नहीं हुए 
जो हो गया सो हो गया, अब मुख़्तियारी छीन
परवरदिगार अपने ख़लीफे को रस्सी डाल 
जो तेरे पास वक़्त से पहले पहुँच गये 
परवरदिगार उनके मसाइल का हल निकाल
परवरदिगार सिर्फ़ बना देना काफ़ी नइँ 
तख़्लीक करके दे तो फिर देखभाल कर 
हम लोग तेरी कुन का भरम रखने आए हैं 
परवरदिगार यार! हमारा ख़याल कर

Afkar Alvi